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जातीय जनगणना : आरक्षण की सीमा बढ़ कर रहेगी

 

  •   डॉ. चन्दर सोनाने

           पिछले दिनों केन्द्र सरकार ने देश में जातीय जनगणना की घोषणा कर सबको चौंका दिया। कल तक जातीय जनगणना का घोर विरोध करने वाली भाजपा अचानक जातीय जनगणना की पैरोकार हो गई। यह भी पहली बार है कि केन्द्र सरकार की घोषणा का विपक्षी दलों सहित सबने स्वागत किया। जातीय जनगणना जब भी होगी, यह तय है कि आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से बढ़कर रहेगी। इसे अब कोई नहीं रोक सकता। 

          आइये, जनगणना के इतिहास की पड़ताल करें। सबसे पहले देश में पहली जनगणना अंग्रेजों के शासनकाल में 1872 में हुई। इसके बाद से 1931 तक हर जनगणना में जाति की जानकारी दर्ज की गई थी। देश के आजाद होने के बाद पहली जनगणना 1951 में हुई। इस जनगणना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को ही जाति के आधार पर वगीकृत किया गया। इसके बाद हर सरकार ने जातिगत जनगणना से दूरी बना ली। सन 1979 में मंडल कमीशन बना। इसका उद्देश्य था सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ी जातियों को आरक्षण देना। इसके बाद 1980 के दशक के आते-आते अनेक राज्यों में अनेक क्षेत्रीय दल उभरे। इनकी राजनीति मुख्यतः जाति आधारित ही थी। इन दलों ने जातिगत आरक्षण के लिए अनेक आंदोलन भी किए। 

        सन 1990 में देश में पहली बार ओबीसी आरक्षण लागू किया गया। इसके बाद से ही जातिगत जनगणना की माँग और तेजी से उठने लगी। सन 2010 में विभिन्न दलों की माँग पर केन्द्र सरकार जातिगत जनगणना के लिए तैयार हुई। आजादी के बाद पहली बार 2011 में सामाजिक-आर्थिक जनगणना कराई गई। किन्तु इसके आँकड़े कभी भी जारी नहीं किए गए। इसके बाद 2014 में भाजपा सरकार आई, उसने भी जातिगत जनगणना के आँकड़े जारी करने से कन्नी काट ली। इसके बाद भाजपा देश में ऐसी सबसे बड़ी पार्टी बन गई जो जातिगत जनगणना की घोर विरोधी थी। इसके बाद कांग्रेस सहित अनेक विपक्षी दलों ने जातिगत जनगणना की माँग करते हुए अनेक आंदोलन किए और देश में माहौल बना दिया। 

         किसी भी परिस्थिति को अपने पक्ष में कर लेने में भाजपा को महारथ हासिल है। यह काबिलियत देश में किसी भी दल के पास नहीं है। इस बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ प्रचारकों ने जातिगत जनगणना की जरूरत प्रतिपादित करते हुए अपनी बात कही। यहीं से माहौल बदला और 30 अप्रैल 2025 को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केन्द्रीय कैबिनेट की राजनीतिक मामलों की समिति ने आगामी जनगणना के साथ ही जातिगत जनगणना कराने का भी फैसला किया। अब आजादी के बाद पहली बार सरकार देशभर में घर-घर जाकर लोगों की जाति पूछेगी और रिकॉर्ड में दर्ज करेगी। 

     हाल ही के कुछ पिछले वर्षों में देश में तीन राज्यों बिहार, कर्नाटक और तेलंगाना की राज्य सरकारों ने अपने-अपने राज्यों में जातीय सर्वे करवा लिया। इससे देश भर में सियासी बवंडर बढ़ा। बिहार में अन्य पिछड़ा वर्ग ( ओबीसी ) और आर्थिक पिछड़ा वर्ग ( ईबीसी ) की आबादी 63 प्रतिशत से भी अधिक निकली। इन आंकड़ों से देशभर में सभी दलों को सियासी नजरिए को बदलने के लिए बाध्य होना पड़ा।

        देश में हाल फिलहाल अनुसूचित जाति ( एससी ) को 15 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। अनुसूचित जनजाति ( एसटी ) को 7.5 प्रतिशत आरक्षण मिला है। अन्य पिछड़ा वर्ग ( ओबीसी ) को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। इसके साथ ही आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग ( ईडब्ल्यूएस ) को 10 प्रतिशत का आरक्षण दिया जा रहा है। ये सब मिलाकर कुल आरक्षण 59.5 प्रतिशत होता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता, इसलिए कुछ राज्यों द्वारा अन्य-पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण नहीं देते हुए अपने-अपने राज्यों में 27 से कम प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है। कोर्ट के आदेशानुसार कुल सीमा 50 पतिशत से कम रखी जा रही है। 

   सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार जिन-जिन राज्यों ने अपने-अपने हिसाब से ओबीसी की आरक्षण की सीमा 27 प्रतिशत से कम कर दी तो उन राज्यों में इसके विरूद्ध आंदोलन होने लगा। धीरे-धीरे देशभर में इस आंदोलन ने माहौल बना लिया। चूँकि अनेक पिछड़े वर्ग के लोग ऐसे थे, जो अनेक राज्यों में हर तरह से सशक्त थे, उन्होंने इसे पिछड़ा वर्ग के विरूद्ध माना। देश में 1990 में ओबीसी आरक्षण लागू हुआ। इससे ओबीसी और सशक्त और मुखर हुए। और वे अपने अधिकार को पाने के लिए आंदोलन करने लगे।

   अब चूँकि केन्द्र सरकार ने जातिगत जनगणना करने का निर्णय ले लिया है, यह जरूरी भी था, इसलिए जब भी जातिगत जनगणना होगी, तब विभिन्न जातियों के आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टिकोण से पिछड़ी जातियों के आँकड़े सामने आ ही जायेंगे। इसलिए फिर से जातीय जनगणना के आधार पर आरक्षण की सीमा बढ़ाने की देश में चारों ओर से माँग उठेगी और मजबूरी में ही सही भाजपा को भी जातिगत जनगणना के सांख्यिकी रिकॉर्ड के आधार पर जातिगत आरक्षण की सीमा बढ़ाने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। जरूरी होगा तो संविधान में भी संशोधन किया जायेगा। एक बार संविधान में संशोधन हो जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट भी कुछ नहीं कर सकेगा। क्योंकि प्रजातंत्र का मूल आधार संविधान ही है। इसलिए यह तय है कि जातिगत जनगणना के बाद आरक्षण सीमा बढ़कर रहेगी। किन्तु यह भी तय है कि यदि यह जातिगत जनगणना पूर्ण पारदर्शिता और निष्पक्षता से की जायेगी और उसके सांख्यिकीय आँकड़ों का ईमानदारी से विश्लेषण किया जायेगा, तो वह आधुनिक भारत का सशक्त दस्तावेज होगा। 

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डा. चंदर सोनाने मध्यप्रदेश के जनसम्पर्क विभाग से संयुक्त संचालक के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद उज्जैन में निवास कर रहे हैं। उनकी सामयिक और सामाजिक विषयों पर विशेष रूचि है और वे सरोकारस्तम्भ मे जरिये जनहित से सरोकार रखने वाले मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय व्यक्त करते हैं।  

न्यूज़ सोर्स : डा. चन्दर सोनाने